
संवाददाता धीरेंद्र कुमार जायसवाल/ थप्पड़ों ने छीन ली मासूम की सुनने की शक्ति: खालसा पब्लिक स्कूल की शिक्षिका पर आरोप
डोंगरगढ़।
खालसा पब्लिक स्कूल (डोंगरगढ़) में पढ़ने वाले कक्षा 7वीं के छात्र सार्थक सहारे की ज़िंदगी एक मामूली सी घटना ने पूरी तरह बदल दी। आरोप है कि 2 जुलाई को SST की क्लास के दौरान शिक्षक की बात न सुन पाने पर शिक्षिका ने 13 वर्षीय छात्र को कई थप्पड़ मारे। इनमें से एक थप्पड़ इतना जोरदार था कि बच्चे की सुनने की शक्ति चली गई।
“मम्मी, अब ठीक से सुनाई नहीं दे रहा।”
स्कूल से घर लौटकर सार्थक ने यही शब्द कहे। घबराए परिजन तुरंत उसे डोंगरगढ़ अस्पताल ले गए। जब हालत में सुधार नहीं हुआ तो राजनांदगांव और फिर रायपुर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों के मुताबिक अब भी सुनने की समस्या बनी हुई है और इलाज लंबा चलेगा।
स्कूल ने औपचारिकता निभाई
परिजनों का आरोप है कि जिस शिक्षिका ने यह हरकत की, उसका नाम प्रियंका सिंह है। स्कूल प्रबंधन ने अब तक सिर्फ़ एक शो-कॉज नोटिस देकर औपचारिकता पूरी कर दी। जब परिजनों ने न्याय की मांग की, तो कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
बीईओ से की शिकायत
सार्थक के माता-पिता ने विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO) बीरेंद्र कौर गरछा को लिखित शिकायत देकर आरोपी शिक्षिका को स्कूल से हटाने की मांग की है। बीईओ ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
“सवालों के घेरे में स्कूल और सिस्टम“
यह घटना कई सवाल खड़े करती है।
प्रतिष्ठित स्कूल में बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है?
पढ़ाई में गलती करने पर आज भी बच्चों को शारीरिक दंड देना क्यों जारी है?
क्या फीस के बदले थप्पड़ और अपंगता ही नई शिक्षा नीति का हिस्सा बन गई है?
छोटे से सवाल पर इतनी बड़ी सज़ा किसी भी जिम्मेदार समाज के लिए गंभीर चेतावनी है। यह मामला केवल सार्थक का नहीं, बल्कि हर अभिभावक की चिंता है जो अपने बच्चों को यह सोचकर स्कूल भेजते हैं कि वे सुरक्षित रहेंगे।
अब सवाल यह है कि शिक्षा विभाग, स्कूल प्रशासन और स्थानीय प्रशासन कब जागेंगे? बच्चों की सुरक्षा से समझौता किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
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