
ब्यूरो चीफ हरिराम देवांगन-चांपा/ छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था इस कदर बेलगाम हो चुकी है कि निजी स्कूल संचालकों की मनमानी अभिभावकों की कमर तोड़ रही है। वर्ष में मात्र 6-7 महीने की पढ़ाई और पूरे 10 महीने की फीस — आखिर ये कैसी शिक्षा नीति है?
अभिभावकों से स्कूल संचालक हर साल न सिर्फ नियमित रूप से फीस वसूलते हैं, बल्कि हर साल उसे मनमानी तरीके से बढ़ाते भी हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि कक्षा 8वीं, 10वीं और 12वीं के विद्यार्थियों की पढ़ाई जनवरी तक ही खत्म कर दी जाती है, इसके बावजूद मार्च-अप्रैल तक की फीस अभिभावकों से वसूली जाती है।
बिना पढ़ाई, बिना सुविधा — सिर्फ शुल्क!
जब सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं तो “वर्क नो पे” का नियम लागू होता है — काम नहीं तो वेतन नहीं।
तो सवाल उठता है कि जब छात्र स्कूल नहीं जा रहे, न उन्हें कोई सुविधा मिल रही है, तो उनसे किस आधार पर फीस वसूली जा रही है?
RTI से खुलासा:
चांपा के एक संवाददाता द्वारा की गई RTI के जवाब में खुलासा हुआ कि छत्तीसगढ़ में भी मध्य प्रदेश की तरह ही 10 महीने की फीस वसूली का नियम लागू है। लेकिन जब छात्रों की पढ़ाई ही फरवरी तक खत्म हो जाती है, तो मार्च-अप्रैल का शुल्क जबरन क्यों?
प्रशासन मौन — संचालक बेलगाम
शिक्षा विभाग और प्रशासन को इन सब बातों की पूरी जानकारी है, लेकिन कार्यवाही के नाम पर शून्य। यही कारण है कि आज स्कूल संचालक न अभिभावकों से सलाह लेते हैं, न किसी नियम का पालन करते हैं।
जरूरी दस्तावेज के नाम पर ब्लैकमेलिंग!
अगर कोई अभिभावक अप्रैल तक का शुल्क देने से इंकार करता है तो उन्हें टीसी, मार्कशीट, या अन्य प्रमाण पत्र देने से भी इनकार कर दिया जाता है।
अब सवाल यह है — क्या शिक्षा सिर्फ व्यापार बनकर रह गई है? क्या स्कूल अब लूट का अड्डा बन चुके हैं? और सबसे जरूरी — क्या सरकार सिर्फ तमाशबीन बनी रहेगी?
वह रे शिक्षा नीति… सच में… महिमा अपरंपार!