
जय जोहार न्यूज़ — संवाददाता हरी देवांगन/ चांपा नगर पालिका की लापरवाही से हर बार बह रहे हजारों लीटर पेयजल
नगर सरकार दिवालिया—चंद रुपए की टोंटी खरीदने तक का नहीं बजट?
जिला उप मुख्यालय चांपा:
चांपा नगर पालिका की पेयजल व्यवस्था इन दिनों सवालों के घेरे में हैं। नगरवासियों से हर साल करोड़ों रुपए का कर लेने वाली नगर सरकार के पास अब शायद चंद रुपए की टोंटी खरीदने भर का भी बजट नहीं बचा है। यह हम नहीं कहते—इस खबर में लगी तस्वीरें खुद गवाही देती हैं।
नगर में मौजूद सरकारी चलित पानी की टंकियों की हालत यह दर्शाती है कि नगर सरकार की लापरवाही के कारण कीमती पेयजल नालियों में बहता जा रहा है। बताया जाता है कि ऐसी 3–4 पानी की टंकियाँ पालिका के पास हैं, और सभी की स्थिति लगभग एक जैसी है—टूटे नल, खुली पाइपलाइनें और लगातार बहता हुआ पानी।
कार्यक्रम से पहले ही बह जाता है पानी:
जब भी इन टंकियों में पानी भरा जाता है, तो लोगों तक पहुँचने से पहले ही हजारों लीटर पानी सड़कों पर गिरते हुए नालियों में समा जाता है। किसी भी कार्यक्रम के पहले पानी भरने के साथ ही टंकियों से निकलने वाला पानी यूँ बहता है मानो दुर्घटनावश नहीं, बल्कि व्यवस्था की खुली लापरवाही से हो रहा हो।
निष्क्रियता इतनी कि बर्बादी सालों से जारी:
नगर सरकारें बदलीं, जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी बदले… पर नहीं बदली पानी की बर्बादी की तस्वीर।
सालों से चल रही इस समस्या पर किसी जिम्मेदार ने न तो संज्ञान लिया, न ही कुछ सुधार की कोशिश।
पहुँच क्या, पढ़ने तक की समझ नहीं?
विडंबना देखिए—इन पानी की टंकियों पर बड़े अक्षरों में लिखा है “जल ही जीवन है” लेकिन लगता है कि इसका भावार्थ जिम्मेदारों को कभी समझ ही नहीं आया।
एक तरफ जनता को समझाया जाता है—
पानी की एक बूंद कीमती है!
जल है तो कल है!
पानी बर्बाद न करें!
लेकिन दूसरी तरफ सरकारी टंकियों से लाखों लीटर पेयजल सरेआम बहकर नष्ट हो रहा है।
क्या सचमुच दिवालिया हो चुका है नगर प्रशासन?
प्रश्न यह भी है कि क्या चांपा नगर सरकार के खजाने में इतनी तंगी है कि 20–30 रुपए की टोंटी तक नहीं खरीदी जा सकती? या फिर समस्या बजट की नहीं, इच्छाशक्ति की कमी और लापरवाही की पराकाष्ठा है?
निष्कर्ष : जल बचाओ के स्लोगन जनता के लिए, पर जिम्मेदारों पर नहीं लागू!
नगर पालिका प्रशासन की यह घोर अनदेखी सिर्फ वित्तीय नहीं, बल्कि समाजिक अपराध है।
जहाँ एक तरफ लोग बूंद-बूंद के लिए तरसते हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी टंकियों से बेहिसाब बहता पानी…
यह तस्वीर सिर्फ बर्बादी नहीं, प्रशासन की संवेदनहीनता का आईना भी है।











