
🇮🇳 स्वतंत्रता के बाद हम कितने स्वतंत्र?
✍️लेखक – हरि देवांगन, ब्यूरो चीफ जांजगीर-चांपा
🌺आजादी का पर्व हर वर्ष हमें अपने वीर सपूतों की याद दिलाता है। वे रणबांकुरे जिन्होंने अपने जीवन और परिवार की परवाह किए बिना सर्वोच्च बलिदान देकर हमें यह अनमोल स्वतंत्रता सौंपी। उनकी त्याग-गाथा के बिना आजादी का कोई भी उत्सव अधूरा है।
👉लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हम सचमुच स्वतंत्र हैं?
🔍 वर्तमान परिप्रेक्ष्य:
आज देश के हर कोने में अशांति और अस्थिरता की छाया गहराती जा रही है। राजनीतिक टकराव, पार्टीगत मनमुटाव, सत्ता की होड़ और वैमनस्य ने उस स्वतंत्रता की आत्मा को आहत किया है, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने प्राणों की आहुति दी थी। संविधान तक पर संकट के बादल मंडराते प्रतीत होते हैं।
⚖️ चुनौतियाँ और विडंबनाएँ:
✅ राजनीति आज आदर्श का नहीं बल्कि ओछे आरोप-प्रत्यारोप का पर्याय बन चुकी है।
🚨 कानून-व्यवस्था रोज तार-तार हो रही है। अपराध, भ्रष्टाचार, जातीय और धार्मिक हिंसा आम बात हो चुकी है।
💰 महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याएँ उपेक्षित रह गई हैं।
🕌 नेताओं के वादे तो भाईचारे और शांति के होते हैं, लेकिन मंच से उतरते ही वही लोग समाज में ज़हर घोलने लगते हैं।
❓सवाल और आत्ममंथन:
क्या यह वही भारत है जिसके लिए हजारों बलिदान हुए?
क्या हम अपने शहीदों की कुर्बानियों को केवल अवसर विशेष पर याद करेंगे?
क्या स्वतंत्रता का अर्थ केवल सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक लाभ तक सीमित रह जाएगा?
🌟 समाधान और आह्वान:
अब समय आ गया है कि हम राजनीतिक स्वार्थ और आपसी वैमनस्य से ऊपर उठें। नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करें, भाईचारा और एकता को संजोएँ, और अपने लोकतंत्र को सशक्त बनाएं। तभी हम कह सकेंगे कि हम न केवल स्वतंत्र हुए हैं, बल्कि स्वतंत्रता को सही मायनों में जी भी रहे हैं।
✨ आज हमें स्वयं से पूछना होगा –
🕊️ “स्वतंत्रता मिली है, पर क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं?”
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