
संवाददाता हरिराम देवांगन/ आरटीआई पर खो-खो का खेल: जिम्मेदार अधिकारी पल्ला झाड़ने में माहिर
जानकारी देने के बजाय चांपा नगर पालिका को बनाया बली का बकरा
प्रदेश में सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act) को लेकर ग्राम पंचायत स्तर पर तो लापरवाही देखने को मिलती ही है, लेकिन जब प्रदेश सचिवालय और संचालनालय जैसे उच्चस्तरीय कार्यालयों में बैठे जिम्मेदार अधिकारी भी आरटीआई को मजाक बना दें, तो यह बेहद गंभीर सवाल खड़ा करता है।
ऐसा ही एक मामला चांपा से सामने आया है, जहाँ एक आरटीआई आवेदन पर जानकारी देने के बजाय जिम्मेदार अधिकारी एक-दूसरे पर जवाबदेही थोपते नजर आए।

क्या है मामला?
28 मई को जय जोहार सीजी न्यूज़ के संवाददाता हरि देवांगन द्वारा नगरी प्रशासन एवं विकास विभाग को एक आरटीआई आवेदन दिया गया।
इसमें वर्ष 2023 में वर्ल्ड बैंक परियोजना के तहत संपत्ति कर वसूली के लिए कराए गए ड्रोन सर्वे और GIS बेस मैप तैयार कराने संबंधी जानकारी मांगी गई थी।
लेकिन नियत समय में जानकारी देने के बजाय कार्यालय सचिव ने 6 जून को आदेश जारी कर जन सूचना अधिकारी और सहायक संचालक पर जिम्मेदारी डाल दी।
इसके बाद सहायक संचालक ने चांपा नगर पालिका को आदेश दे दिया।
फिर उच्च स्तर से भी आदेश चांपा नगर पालिका को दे दिया गया।
यानी जिस जानकारी को सीधे-सीधे देना था, उसे देने के बजाय पूरी प्रक्रिया ‘खो-खो’ का खेल बन गई।

अब तक जानकारी नहीं
सचिवालय से लेकर चांपा नगर पालिका तक आवेदन का ठेला धकेलने के बाद भी आज तक आवेदक को कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई।
यह न केवल आरटीआई अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि यह दर्शाता है कि जिम्मेदार अधिकारी जवाबदेही से बचने के लिए नियमों को ताक पर रखकर केवल आदेशों की औपचारिकता निभा रहे हैं।
जनहित से जुड़ा मामला
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह मामला जनहित से जुड़ा हुआ है।
बताया जा रहा है कि भविष्य में संपत्ति कर का पुनर्निर्धारण होने की संभावना है।
ऐसे में ड्रोन सर्वे और GIS बेस मैप के जरिए तैयार की गई जानकारी गुप्त रखना और जनता को अंधेरे में रखना कहीं न कहीं सवाल खड़े करता है।
विधानसभा में उठे सवाल?
आरटीआई अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी को लेकर जिस तरह से विभागीय अधिकारी लापरवाही कर रहे हैं, उस पर विधानसभा में सवाल उठने चाहिए।
एक तरफ सरकार ई-गवर्नेंस और पारदर्शिता की बातें करती है, वहीं दूसरी तरफ सूचना के अधिकार को हल्के में लिया जा रहा है।
आम जनता पर बोझ की तैयारी?
बिना पर्याप्त प्रचार-प्रसार के संपत्ति कर और एसेट मैनेजमेंट की परियोजनाओं को लागू करने की तैयारी की जा रही है।
ऐसे में यह जरूरी है कि संबंधित विभाग पारदर्शिता बरते और जनता के साथ जानकारी साझा करे।
यह मामला साफ दिखाता है कि सूचना देने के बजाय जिम्मेदार अधिकारी एक-दूसरे पर जवाबदेही डालने की परंपरा निभा रहे हैं।
निष्कर्ष: आरटीआई के माध्यम से मांगी गई जानकारी देने में आनाकानी और जिम्मेदारी टालने का यह खेल लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
सवाल यह है कि प्रदेश में आखिर कब सूचना का अधिकार पूरी तरह से साकार होगा?
फिलहाल इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में ही छुपा हुआ नजर आता है।
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