
जिला ब्यूरो-हरिराम देवांगन/ समाधान पेटी बनी एक छलावा, सैकड़ों लोग आवेदन देने से वंचित
सुशासन तिहार में सादे कागज पर लिखे आवेदन लेने से कर्मचारियों ने किया इनकार
चांपा। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सुशासन तिहार के अंतर्गत चलाए जा रहे समाधान पेटी अभियान की हकीकत ज़मीनी स्तर पर कुछ और ही दिखी। जिला उप-मुख्यालय चांपा में समाधान पेटी में आम जनता के आवेदन लेने की प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं।
शासन के निर्देशानुसार प्रदेशभर में समाधान पेटी लगाकर नागरिकों से शिकायत, सुझाव व मांग से संबंधित आवेदन लेने की बात कही गई थी। प्रचार-प्रसार भी बड़े पैमाने पर हुआ, जिससे प्रेरित होकर सैकड़ों लोग अपने-अपने आवेदन लेकर समाधान पेटी तक पहुंचे। लेकिन वहां तैनात कर्मचारियों ने सादे कागज में लिखे हुए आवेदन लेने से साफ इनकार कर दिया।
आवेदनकर्ताओं के अनुसार कहीं भी यह उल्लेख नहीं था कि आवेदन केवल तय प्रारूप में ही स्वीकार किए जाएंगे। कई नागरिक, विशेषकर अशिक्षित व अल्पशिक्षित, जो प्रारूप प्राप्त नहीं कर सके, उन्होंने अपनी समस्याएं सादे कागज में लिखी थीं। मगर समाधान पेटी के पास मौजूद कर्मचारियों ने आदेशों का हवाला देकर ऐसे आवेदनों को अस्वीकार कर दिया।
स्थिति यह रही कि भीड़ बढ़ने के बावजूद अनेक लोग आवेदन जमा नहीं कर सके और निराश होकर लौट गए। यह व्यवस्था नागरिकों की सहभागिता को प्रोत्साहित करने के बजाय, उन्हें हतोत्साहित करती नजर आई।
संवाददाता को भी नहीं मिला न्याय
संवाददाता ने जब पांच अलग-अलग सादे आवेदन समाधान पेटी में डालने की कोशिश की, तो ड्यूटी पर मौजूद कर्मचारियों ने उन्हें भी मना कर दिया। काफी आग्रह करने पर एक कर्मचारी ने एक आवेदन लिया, लेकिन शाम को संपर्क करने पर उस आवेदन की जानकारी से अनभिज्ञता जताई गई।
यह घटना दिखाती है कि समाधान पेटी मात्र औपचारिकता बनकर रह गई है। जब एक पत्रकार के साथ ऐसी स्थिति हो सकती है, तो आम नागरिकों की सुनवाई किस हद तक हो रही होगी, यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
सिस्टम की संवेदनहीनता उजागर
शासन की मंशा भले ही सुशासन को बढ़ावा देने की रही हो, लेकिन कर्मचारियों द्वारा जमीनी स्तर पर दिखाई गई असंवेदनशीलता ने पूरी प्रक्रिया की साख पर सवाल खड़ा कर दिया है। जनता ने जैसा समझा, वैसा आवेदन किया — उन्हें मार्गदर्शन देने की बजाय, नियमों की आड़ में उनकी आवाज को दबा दिया गया।
यदि समाधान पेटी में आवेदन डालने का ही अवसर नहीं दिया जाएगा, तो सुशासन का यह महोत्सव केवल कागजों की शोभा बनकर रह जाएगा।











