
संवाददाता हरिराम देवांगन
विकास पथ पर पिछड़ रहा छत्तीसगढ़, राजनीतिक दलों का आपसी वैमनस्य इसकी वजह तो नहीं?
राजनीति का पर्याय, तू डाल डाल तो मैं पांत-पांत

जांजगीर-चांपा – वैसे तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत होती है बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था जिसमें देशवासियों (मतदाताओं) के सम्मुख सरकार चुनने के लिए किसी एक दल की अनिवार्यता ना होते हुए बहुदलीय प्रणाली के चलते अच्छी सरकार के गठन में जनता को सोच विचार करने का पर्याप्त अवसर मिलता है,और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों उद्देश्य सहित सोच, विचारधारा पर गहन आत्म मंथन के बाद पार्टी का चुनाव कर उन्हें मतदान के जरिए सरकार बनाने का बहुविकल्प व्यवस्था होता है,और इसी से बेहतर राजनीतिक पार्टी का चुनाव कर राज्य में सरकार स्थापना की जाती है,और यही लोकतांत्रिक प्रणाली में बहुदलीय व्यवस्था का यथार्थ माने खुलकर सामने आता, लेकिन जिस तरह से प्रदेश के अंदर राजनीतिक पार्टियों का वैचारिक निर्धनता और आपसी वैमनस्य चल रहा है इसमें प्रदेश और जनता हित को ताक में रखकर छद्म युद्ध किया जा रहा है,और अब यह संदेह नहीं रह गया कि बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था में जिस तरह से आपसी गुटबाजी व टकराव का नतीजा हमें देखने को मिल रहा है वह प्रदेश के विकास के लिए अच्छा संदेश नहीं कहा जा सकता, यह लगातार देखने सुनने में आ रहा है कि शासन के खिलाफ हमेशा विरोधी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा जिस तरह से टांग खींचू पद्धति अपना कर शासन व्यवस्था पर कालिख पोतने का प्रयास किया जाता है,वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सही मापदंड नहीं है,विपक्षी राजनीतिक पार्टी को चाहिए कि यदि शासन कोई अच्छा कार्य कर रहा है तो उसे खुलकर संपूर्ण समर्थन देकर और बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, लेकिन यहां तो सरकार चाहे जो भी करें उसके विरोध में एक नहीं हजार स्वर उठने लगते हैं, इस तरह से आम जनता को यह कभी समझ में ही नहीं आता कि आखिरकार सरकार के द्वारा प्रदेश हित में जो कार्य किया जा रहा है वह सही है या नहीं।
जिस तरह से विरोधी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा विरोध का झंडा उठाकर एक दूसरे को नंगा करने के लिए अदृश्य अखाड़ा में जनता हित के बाहुबली रक्षक बनकर सर्वत्र न्यौछावर करने का ढोंग किया जाता है,वह लोकतंत्र में जनता के साथ होने वाला सबसे बड़ा छलावा कहा जा सकता है, जो की प्रदेश के लिए आज अभिशाप की बायर चौतरफा मंडराता जान पड़ता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियों का अपना सोच व मकसद क्या होता है, यह जनता के समझ से बाहर हो जाता है, यदि इसी तरह से सरकार के विरोध में बहुदलीय व्यवस्था के तहत विरोध का स्वर हमेशा दिखाई सुनाई देता रहेगा तो जनता किस तरह से यह तय करें कि आखिर गलत क्या हो रहा है,विपक्षी दलों का यह दायित्व बनता है कि सरकार द्वारा की जाने वाली कार्य योजना पर पैनी नजर रखें और यदि यह कार्य योजना प्रदेश सहित जनता के हित विरोध में हो तो उसे पारदर्शिता के साथ प्रदेश भर में विरोध, धरना, प्रदर्शन, नुक्कड़,नाटक के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना विरोधी दलो का प्रादेशिक कर्तव्य होना चाहिए,लेकिन यहां तो स्थिति परिस्थिति जो भी हो सरकार की लोकप्रियता पर विराम सहित प्रश्न चिन्ह लगने की मानसिकता को लेकर विपक्षी दल किसी भी हद तक जाने को तैयार बैठे नजर आते हैं,यही वजह है कि अब राजनीति में मतदाता केवल मतदान करने तक ही सीमित रह गया है और राजनीति के दंगल में केवल सरकार बनाम विपक्षी दल अदृश्य दिखाई देने वाला हथियार जो की विरोध, छींटाकशी, मर्यादाहीन बयान बाजी, फुहड़पन आक्रामकता, जैसे परंपरागत हथियार लेकर आर पार की लड़ाई करते हुए देखा जा रहा है, ऐसे में प्रदेश का विकास सरकार और जनता मिलकर कैसे कर पाएंगे, जब विपक्षी दल यह कहने में लग जाए तू डाल डाल तो मैं पात-पात, ऐसी वैचारिक विरोध में राज्य विकास को लेकर गहन आत्म चिंतन मंथन करना तो लाजमी है।
( यह लेख संवाददाता सहित चैनल का व्यक्तिगत विचारधारा पर आधारित है किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन या पक्ष में नहीं माना जाना चाहिए )