
संवाददाता धीरेंद्र जायसवाल
लोकतंत्र में यही भाषा और इसी तरह का प्रदर्शन मान्यता प्राप्त है, ऐसा बच्चे, खासकर छात्राएँ, मान लेते हैं। इसलिए उनकी दिमागी हालत भी वैसी ही हो गई है।
छत्तीसगढ़ के कवर्धा – दुल्लापुर स्कूल के बच्चे-बच्चियाँ पुलिस को धक्का देते हुए कलेक्ट्रेट के भीतर घुस गए। उन्होंने नारेबाजी शुरू कर दी, “जूता मारो सालों को…!”

इनका कहना है कि स्कूल की प्रभारी प्राचार्या उनसे टॉयलेट साफ करवाती हैं और ऐसा न करने पर टीसी देने की धमकी देती हैं। 7 जनवरी को, कुछ स्टूडेंट ने कलेक्ट्रेट में ज्ञापन दिया था, जिसमें उन्होंने शिकायत की कि जिला शिक्षा अधिकारी प्रभारी प्राचार्या को बचा रहे हैं।
उन्होंने मांग रखी कि तुरंत प्रभारी प्राचार्या पर कार्रवाई की जाए। अब, करीब पखवाड़े भर बाद, ये स्कूली छात्र-छात्रा किसी राजनीतिक दल की तरह पेश आए।
बिलासपुर हाईकोर्ट ने हाल ही में सरकार से पूछा कि आखिर स्कूली बच्चों के सड़क पर प्रदर्शन की नौबत क्यों आई है?
ये सवाल गंभीर है। भले ही बात स्कूलों में टीचर्स की कमी की हो, लेकिन यह प्रदर्शन सवाल उठाता है कि आखिर क्यों बच्चों को नारे लगाने पड़ रहे हैं।