
संवाददाता हरिराम देवांगन/ मुंह चिढ़ाता हुआ स्टेशन में ‘लिफ़्ट’— तैयार होने के बाद भी बंद!
प्रशासनिक निष्क्रियता यात्रियों पर भारी
करोड़ों में बनी दोनों लिफ्टें— पर काम की नहीं!
चांपा। जिला उपमुख्यालय चांपा रेलवे स्टेशन, जिसे ए-श्रेणी का दर्जा प्राप्त है, वर्षों से यात्री सुविधाओं की कमी से जूझता रहा है। इसी समस्या को देखते हुए रेलवे ने प्लेटफॉर्म क्रमांक 1 और 2–3 पर लिफ्ट लगाने के लिए करोड़ों रुपये के टेंडर जारी कर कार्य शुरू कराया था। लगभग तीन साल बाद लिफ्टें पूरी तरह बनकर तैयार तो हो गई हैं, लेकिन प्रशासन की उदासीनता के कारण आज भी इसका उपयोग शुरू नहीं हो पाया है।
लिफ्ट 8 महीने पहले बनकर तैयार— फिर भी बंद!
यात्रियों के लिए बनाई गई ये लिफ्टें करीब आठ माह से तैयार हैं, लेकिन अब तक उद्घाटन तो दूर, इन्हें चालू भी नहीं किया गया है।
इस लापरवाही का सीधा दुष्प्रभाव वृद्ध यात्रियों, महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा है, जिन्हें एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म तक जाने के लिए लंबी सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता है।
ट्रैक पार कर जोखिम उठाना मजबूरी:
अनेक यात्री ट्रेन पकड़ने की जल्दबाजी में रेलवे ट्रैक पार करने को मजबूर होते हैं, जबकि यह पूरी तरह प्रतिबंधित है और कई बार हादसे भी हो चुके हैं।
इसके बावजूद रेलवे प्रशासन का इस गंभीर विषय पर मौन रहना कई सवाल खड़े करता है।
कायाकल्प हुआ स्टेशन— पर सुविधा अधूरी:
हाल ही में चांपा स्टेशन का सौंदर्यीकरण और नवीनीकरण बड़े पैमाने पर हुआ है।
लेकिन लिफ्ट चालू हुए बिना यह पूरा प्रोजेक्ट अधूरा माना जा रहा है।
रेलवे को करोड़ों की वार्षिक आय— सुविधाएं ‘मुट्ठीभर’
चांपा स्टेशन हावड़ा–मुंबई मुख्य कॉरिडोर पर स्थित होने के कारण हर दिन सैकड़ों यात्री विभिन्न राज्यों और महानगरों की यात्रा करते हैं।
रेलवे को टिकटों के माध्यम से हर वर्ष करोड़ों की आय होती है, फिर भी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में ऐसी लापरवाही समझ से परे है।
बड़ा सवाल— आखिर कब मिलेगी राहत?
निर्माण पूरा होने के बाद भी लिफ्ट बंद रखना यात्रियों के साथ अन्याय है।
अब सवाल यह है कि—
👉 आखिर कब रेलवे प्रशासन की नींद खुलेगी?
👉 कब लिफ्ट यात्रियों को समर्पित की जाएगी?
👉 कब बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे सुरक्षित तरीके से प्लेटफॉर्म बदल सकेंगे?
जब तक जिम्मेदार चेतेंगे नहीं, तब तक यात्रियों को
सीढ़ियां, ट्रैक पार करने का जोखिम, और मुश्किल भरी आवाजाही—इन सब से गुजरना ही पड़ेगा।











