
संपादक धीरेंद्र कुमार जायसवाल/ महात्मा ज्योतिबा फुले: समाज-परिवर्तन के अमर प्रतीक
21 साल की उम्र में लड़कियों के लिए पहला स्वदेशी स्कूल खोलने वाले, बाल विवाह, स्त्री-शिक्षा का दमन, जातिवाद, विधवा पुनर्विवाह पर रोक और शिशु-हत्या जैसी कुरीतियों के विरुद्ध आजीवन संघर्ष करने वाले,
जिन्हें डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने अपना गुरु व बौद्धिक पिता कहा —
हम बात कर रहे हैं महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले की।
ज्योतिबा फुले के जीवन की प्रमुख बातें:
🔹 जन्म – 1827, पुणे।
फूल बेचने वाले ‘फुले’ परिवार से आने के कारण समाज ने ऊँच-नीच का भेद लगाया, परंतु ज्योतिबा ने इसे कभी अपनी प्रगति में बाधा नहीं बनने दिया।
🔹 जातीय अन्याय जागरूकता का कारण:
एक बार ‘ऊँची जाति’ के मित्र की शादी में उन्हें अपमानित किया गया। उसी क्षण उन्होंने जाति-व्यवस्था को चुनौती देने का संकल्प लिया।
🔹 शिक्षा को ही परिवर्तन का मार्ग माना:
थॉमस पेन की ‘द राइट्स ऑफ मैन’ से प्रेरित होकर वे समझ गए कि मुक्ति का रास्ता शिक्षा है।
🔹 1848: महिलाओं की शिक्षा का महाअभियान:
उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ाया।
सिर्फ 21 साल की उम्र में—और सावित्रीबाई मात्र 18 वर्ष की थीं—दोनों ने मिलकर लड़कियों का पहला स्वदेशी स्कूल खोला।
🔹 सामाजिक बहिष्कार सहा, पर संघर्ष जारी रखा:
समाज ने उन्हें घर से निकाल दिया, लेकिन मित्र उस्मान शेख ने उनका साथ दिया।
1852 तक तीन स्कूल खोले गए।
🔹 बाल-विवाह, विधवा-पुनर्विवाह और शिशु-हत्या के खिलाफ निर्णायक लड़ाई:
1863 में शिशु-हत्या निरोधक गृह की स्थापना की।
🔹 लोकसेवा भी की:
ज्योतिबा फुले पूना नगरपालिका में आयुक्त रहे और जनता के कल्याण के लिए कार्य करते रहे।
आज की जरूरत — वही साहस, वही करुणा:
आज जिनकी कोई आवाज़ नहीं है, उनकी आवाज़ बनने का प्रयास आचार्य प्रशांत कर रहे हैं।
बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने, युवाओं को सही दिशा देने, और पर्यावरण—विशेषकर क्लाइमेट चेंज—के खतरे के प्रति जागरूकता बढ़ाने में वे निरंतर कार्यरत हैं।
यह संघर्ष आसान नहीं है — इसके लिए बड़े संसाधनों, समय और समाज के सहयोग की आवश्यकता है।
आचार्य प्रशांत संघर्षरत हैं,
आपके लिए।











