
✍️ संवाददाता धीरेंद्र कुमार जायसवाल/ विशेष पड़ताल, जय जोहार सीजी न्यूज़
मामला क्या है?
छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक ढांचे में एक बड़ा घोटाला सामने आया है।
प्रदेश के 33 जिलों के लिए शासन ने सिर्फ़ 46 अपर कलेक्टर पद स्वीकृत किए हैं।
लेकिन हकीकत यह है कि जिलों में 80 अफसर अपर कलेक्टर की कुर्सी पर बैठे हैं।
यानी 34 पद पूरी तरह गैरक़ानूनी तरीके से बढ़ाए गए और इन अतिरिक्त अफसरों को हर माह जनता के टैक्स से मोटी तनख्वाह दी जा रही है।
वित्तीय घोटाला कैसे?
एक अपर कलेक्टर को ₹50,000 से ₹1 लाख तक वेतन मिलता है।
34 अतिरिक्त अफसरों की नियुक्ति से शासन पर हर माह लगभग ₹30 लाख रुपये का बोझ पड़ रहा है।
सालभर में यह राशि ₹3.5 करोड़ से भी ज़्यादा हो जाती है।
किन जिलों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी?
जिला स्वीकृत पद कार्यरत अफसर:
जिला। स्वीकृत पद कार्यरत अफसर
बलरामपुर 1 5
कोरिया 1 3
दुर्ग 2 4
केशकाल। 1 3
बेमेतरा 1 4
बालोद। 1 3
रायपुर 2 5
धमतरी 1 3
बालोदाबाजार। 2 4
गरियाबंद 1 2
बिलासपुर 2 3
मनेंद्रगढ़-भरतपुर-चिरमिरी 1 3
मोहला-मानपुर 1 2
(अन्य जिलों का भी यही हाल है।)
यह तालिका साफ़ करती है कि यह कोई चूक नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक सेटअप है।
संविदा अफसरों का खेल:
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि संविदा पर रखे गए अफसरों को भी अपर कलेक्टर का प्रभार दे दिया गया है।
इन अफसरों ने न तो UPSC/PSC जैसी कठिन चयन प्रक्रिया पास की है।
न ही उनके पास स्थायी सेवा की जवाबदेही है।
फिर भी जिलों में फैसले लेने की कुर्सी उन्हीं के पास है।
यह सीधे-सीधे नियम और पारदर्शिता का उल्लंघन है।
विरोध तो हुआ, कार्रवाई नहीं:
छत्तीसगढ़ प्रशासनिक सेवा संघ ने शासन को पत्र लिखकर इस गड़बड़ी पर आपत्ति जताई।
लेकिन न शासन ने अतिरिक्त अफसरों को हटाया और न जिम्मेदारों पर कार्रवाई की।
छोटे कर्मचारियों की अनदेखी:
सचिवालय और जिलास्तर पर काम करने वाले छोटे कर्मचारी सालों से वेतनवृद्धि और पदोन्नति का इंतज़ार कर रहे हैं।
कई विभागों में कर्मचारी संघ 7वाँ और 8वाँ वेतनमान लागू करने की मांग कर रहे हैं।
शासन का जवाब है – “वित्तीय भार ज़्यादा है।”
लेकिन यही सरकार उन्हीं पैसों से ग़ैरक़ानूनी तरीके से 34 अतिरिक्त अपर कलेक्टरों को वेतन बांट रही है।
सबसे बड़े सवाल:
1. 46 पद स्वीकृत होने के बावजूद 80 अफसरों को नियुक्त करने का आदेश किसने दिया?
2. हर माह ₹30 लाख रुपये की लूट की जवाबदेही कौन लेगा?
3. संविदा अफसरों को नियमविरुद्ध कुर्सी किसके इशारे पर दी गई?
4. क्या यह घोटाला राजनीतिक संरक्षण में चल रहा है?
नतीजा:
छोटे कर्मचारी महँगाई से जूझते हुए पुरानी तनख्वाह पर काम करने को मजबूर हैं।
जिलों में अतिरिक्त अपर कलेक्टर बैठाकर दोहरे आदेश और भ्रम की स्थिति बन गई है।
जनता का टैक्स विकास कार्यों में लगने के बजाय “अफसरशाही की मलाई” पर खर्च हो रहा है।
स्पष्ट है कि यह घोटाला सिर्फ़ नियम उल्लंघन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका खामियाज़ा छोटे कर्मचारियों और आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।