
✍🏻 ब्यूरो चीफ: हरि देवांगन, प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठते सवाल
जिला उप मुख्यालय चांपा: जिले में मानसून की पहली फुहार के साथ ही जहां आम जन मानस राहत की सांस लेता है, वहीं कुछ वर्गों में बेचैनी बढ़ जाती है—वो हैं फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले, झोपड़ी में रहने वाले गरीब परिवार और सड़कों के किनारे अपनी रोजी-रोटी कमाने वाले छोटे व्यापारी। कारण स्पष्ट है—प्रशासन का ‘बेजा कब्जा हटाओ’ अभियान।
हर वर्ष की तरह इस बार भी बारिश के दस्तक देते ही प्रशासन हरकत में आ चुका है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों, खासकर चांपा नगर और आसपास के ग्रामों में कब्जा हटाने की कार्यवाही प्रारंभ हो चुकी है।
यहां सवाल कब्जा हटाने के अधिकारिक निर्णय पर नहीं है, बल्कि उसकी समयावधि और मानवीय दृष्टिकोण की अनुपस्थिति पर है। मानसून के दौरान जब जीवन सामान्य रूप से अस्त-व्यस्त रहता है, तब प्रशासन द्वारा इस तरह की कार्यवाही को अव्यवहारिक, अलोकतांत्रिक और अमानवीय माना जा रहा है।

प्रशासन की मौन सहमति या लापरवाही?
जनता का यह भी सवाल है कि जब अतिक्रमण हो रहा होता है, तब राजस्व अमला कहां रहता है? क्यों उस वक्त कोई रोक-टोक नहीं की जाती? सालभर आंखें मूंदे बैठे रहना और फिर मानसून में अचानक कार्यवाही करना, यह दर्शाता है कि या तो निगरानी तंत्र विफल है या इच्छाशक्ति की कमी है।
कुरदा से गेमनपुल तक दखल..
चांपा क्षेत्र के ग्राम कुरदा में हाल ही में हुए कब्जा हटाओ अभियान के बाद अब नगर के प्रवेश द्वार गेमन पुल क्षेत्र में सब्जी विक्रेताओं और छोटे व्यापारियों को नोटिस जारी कर हटाने की कार्यवाही की जा रही है। बरसात के मौसम में यह कार्रवाई लोगों को और अधिक संकट में डाल रही है।
क्या यही विकास है?
विकास के नाम पर गरीबों के आशियाने उजाड़ देना, और वह भी ऐसे समय में जब उन्हें छत की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, प्रशासन की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। क्या ऐसी योजनाओं के लिए पुनर्वास नीति नहीं होनी चाहिए? क्या यह आवश्यक नहीं कि मानसून से पूर्व ही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई संपन्न हो?
जनता का सवाल—उत्तर कौन देगा?
🔳मानसून में ही कार्रवाई क्यों?
🔳क्या पूरे साल निगरानी नहीं की जाती?
🔳गरीबों को हटाने से पहले पुनर्वास क्यों नहीं?
🔳छोटे व्यवसायियों को वैकल्पिक स्थान क्यों नहीं दिए जाते?
यह तमाम सवाल अब आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बन चुके हैं। जरूरत है कि प्रशासन संवेदनशीलता दिखाए और अपनी कार्यशैली में बदलाव लाए।
निष्कर्ष:
बेजा कब्जा हटाना गलत नहीं है, लेकिन उसका समय, तरीका और उद्देश्य जनहित में होना चाहिए। प्रशासनिक कार्रवाई अगर न्याय और संवेदना के साथ की जाए, तो वह स्वागत योग्य होती है। लेकिन यदि वह केवल कागजों में उपलब्धता दिखाने का साधन बन जाए, तो जनता में विश्वास टूटता है।