
🖊️ रिपोर्ट: हरि देवांगन, जिला ब्यूरो चीफ सफेद चांदी बनाम मौन साजिश — हसदेव नदी का चीरहरण
📍 स्थान: चांपा, जिला जांजगीर-चांपा
“प्रश्न उठना लाजिमी है…”
जांजगीर-चांपा ही नहीं, पूरे अंचल की जीवनरेखा मानी जाने वाली हसदेव नदी आज ‘सफेद चांदी’ यानी रेत के लालच में चीरती जा रही है। घाटों पर दिन-रात मशीनें गरज रही हैं, ट्रैक्टरों का काफिला थमता नहीं — पर प्रशासन मौन और जनप्रतिनिधि निष्क्रिय।
सवाल यह है कि…
क्या जनप्रतिनिधि क्षेत्र के रक्षक हैं या भक्षक बन बैठे हैं?

सैकड़ों समाचार प्रकाशित हो चुके हैं। हाईकोर्ट से लेकर ग्रामसभा तक की आवाज़ उठी है। फिर भी नदी के घाटों पर अवैध रेत खनन खुलेआम चल रहा है। न कोई निगरानी, न कोई कार्रवाई। हसदेव की कोख को हर दिन थोड़ा और खोदा जा रहा है — और जिम्मेदार अधिकारी “मौनी बाबा” बने हुए हैं।
कभी पर्यावरण का प्रतिबिंब रही यह नदी, आज गड्ढों और गहराइयों का ऐसा नक्शा बन गई है, जो शायद कभी नहीं भर पाएगा। न कोई पुनर्भरण, न कोई योजना। जिन खदानों में खनन के बाद मलवा डाला जाता है, वहां कुछ राहत मिलती है, पर हसदेव नदी को तो सिर्फ छीना गया — दिया कुछ नहीं गया।
रेत माफिया बेखौफ, भारी मशीनों से उत्खनन करते हैं। प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी चुप हैं। जिनसे जनता ने जनहित की उम्मीद की थी, वे आज मौन हैं। शासन की खनिज नीति केवल कागजों तक सीमित रह गई है।
राजनीतिक मौन और प्रशासनिक चुप्पी — किसका अपराध बड़ा?
राजनीतिक दलों के नेता आते-जाते रहे, लेकिन किसी ने भी इस नदी के चीरहरण को मुद्दा नहीं बनाया। हसदेव नदी की पर्यावरणीय हत्या पर सबने आंख मूंद ली

।अब सवाल है — क्या कोई भागीरथ आएगा?
क्या कोई जनप्रतिनिधि इस नदी के पुनर्जीवन का बीड़ा उठाएगा?
या हसदेव, जो कभी छत्तीसगढ़ की शान थी, आने वाले वर्षों में केवल एक चेतावनी बनकर रह जाएगी?