
संवाददाता धीरेंद्र कुमार जायसवाल/ छत्तीसगढ़ में बिजली विभाग का सौतेला व्यवहार क्यों?
ग्रामीण इलाकों में लाइट कटौती से जनता परेशान, मेंटेनेंस बन गया बहाना
तिल्दा नेवरा/कोहका।
प्रदेश में बिजली विभाग की कार्यशैली को लेकर ग्रामीण अंचलों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। जहां शहरों और पॉश सोसाइटियों में बिजली आपूर्ति सुचारू रूप से की जाती है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बार-बार लाइट गुल होना आम बात बन चुकी है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि हर बार बिजली गुल होने पर एक ही जवाब मिलता है—मेंटेनेंस चल रहा है। लेकिन यह मेंटेनेंस हर रोज, खासतौर पर रात के वक्त ही क्यों होता है? जैसे ही खाना पकाने का समय होता है, लाइट चली जाती है, और फिर जब सोने का समय आता है, तब भी अंधेरा छा जाता है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सुबह ठीक 6 बजे बिजली स्वतः वापस आ जाती है। क्या यह किसी पूर्व-निर्धारित शेड्यूल का हिस्सा है?
शिकायत करने पर मिलती है राहत, बाकी गांव अंधेरे में
ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि जब कोई व्यक्ति या गांव सख़्ती से शिकायत करता है, तो उसी गांव की बिजली बहाल कर दी जाती है, जबकि बाकी गांवों को अंधेरे में छोड़ दिया जाता है। इससे साफ़ जाहिर होता है कि बिजली की आपूर्ति में पारदर्शिता और समानता नहीं है।
क्या जनप्रतिनिधियों के इशारे पर हो रही है बिजली आपूर्ति?
कुछ लोगों ने संदेह जताया है कि बिजली कटौती और आपूर्ति का संचालन जनप्रतिनिधियों के इशारे पर किया जा रहा है। जो क्षेत्र चुप रहता है, उसे नजरअंदाज किया जाता है, और जहां से राजनीतिक या सामाजिक दबाव आता है, वहां प्राथमिकता दी जाती है।
अब सवाल यह उठता है कि दोष किसका है?
क्या यह शासन-प्रशासन की उदासीनता है, बिजली विभाग की लापरवाही, या कर्मचारियों की मनमानी?
जब उपभोक्ता समय पर बिजली बिल चुका रहे हैं, तो फिर उन्हें बराबरी की सुविधा क्यों नहीं मिल रही?
अब देखना यह है कि इस खबर के प्रकाशन के बाद शासन-प्रशासन, बिजली विभाग और संबंधित अधिकारी इस गंभीर समस्या पर कोई संज्ञान लेते हैं या नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा कब तक यूं ही चलती रहेगी?