
ब्यूरो चीफ हरि राम देवांगन: प्रशासन के नाक के नीचे खुली चुनौती: हसदेव नदी में बारूद से मछली शिकार, पुल और पर्यावरण दोनों खतरे में!
जिला उप मुख्यालय चांपा स्थित हसदेव नदी में इन दिनों कलयुगी मछेरों द्वारा अवैध रूप से विस्फोट कर मछली मारने का दुस्साहस भरा खेल खुलेआम जारी है। यह खतरनाक गतिविधि प्रशासन की नाक के नीचे रात भर चल रही है, जिससे न केवल नदी का प्राकृतिक पर्यावरण दूषित हो रहा है, बल्कि जर्जर हालात में मौजूद ऐतिहासिक गेमन पुल और पास का एनीकट भी खतरे की जद में आ गया है।
रातभर गूंजते हैं धमाके, दिन में लगती है मछेरों की मंडी:
मध्य रात्रि से सुबह तक नदी के घाटों पर बारूद के विस्फोट किए जा रहे हैं। बताया जाता है कि एक विस्फोट से लगभग 12 से 14 मीटर क्षेत्र में मछलियां निष्क्रिय होकर सतह पर आ जाती हैं, जिन्हें टोर्च की रोशनी में जाल डालकर मछेरे आसानी से पकड़ लेते हैं। यह तरीका पारंपरिक जाल से मछली पकड़ने की विधि से कहीं अधिक आसान और कारगर बन गया है।
प्रशासन मौन, विभाग लापरवाह:
हालांकि इस मुद्दे को लेकर पूर्व में कई बार प्रतिनिधियों और मीडिया द्वारा आवाज उठाई जा चुकी है, लेकिन मत्स्य विभाग और जल संसाधन विभाग सहित संबंधित विभागों की उदासीनता के कारण यह अवैध कृत्य दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
स्वास्थ्य पर भी खतरा, पीने का पानी बन सकता है ज़हर:
हसदेव नदी से आसपास के क्षेत्र में पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है। ऐसे में यदि बारूद के अंश जल में शामिल हो जाते हैं, तो यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है। साथ ही इस तरह से पकड़ी गई मछलियों का सेवन भी गंभीर बीमारियों को न्योता दे सकता है।
पुल और एनीकट पर मंडरा रहा खतरा:
गेमन पुल और एनीकट जैसे संरचनात्मक धरोहरों के पास यदि इस तरह के विस्फोट होते हैं, तो उनके क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है। यह न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी बेहद चिंताजनक है।
ज़रूरत है त्वरित कार्रवाई की:
अब वक्त आ गया है कि प्रशासन इन अवैध मछली मारने वालों पर सख्त कार्यवाही करे। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और क्षेत्र की धरोहरों की भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
अब देखना होगा कि प्रशासन जागता है या यह खेल यूं ही जारी रहेगा।