
संवाददाता हरीराम देवांगन
विकास पथ पर पिछड़ रहा छत्तीसगढ़
प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर,अवरुद्ध विकास की वजह तो नहीं?
पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या इस बात की देता है गवाही
जिला उपमुख्यालय चांपा- गुड गवर्नेंस हर सरकार की प्राथमिकता होती है, लेकिन कथनी और करनी में जब अंतर होने लगे तो यह बात केवल एक छलावा बनकर रह जाता है,भ्रष्टाचार ऐसी गंभीर समस्या है जो समाज और राष्ट्र की प्रगति को अद्वितीय नुकसान पहुंचता है,माना जाता है कि यह सत्ता,धन और संसाधनों के दुरुपयोग के रूप में सामने आता है,एक निम्न सरकारी कार्यालय से लेकर उच्च स्तरीय अधिकारी के इर्द-गिर्द पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार का इस कदर बोल बाला है कि कोई भी काम नाक के सीध पर होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं होती,जहां नोटों की हरियाली दिखाई देने की संभावना मात्रा हो वहां पर काम फटाफट होने लगता है,जब वैधानिक रूप कार्य बड़ी आसानी से हो जानी चाहिए उस कार्य में कई विघ्न बाधा डालकर जिम्मेदारों के द्वारा काम को लटका देने की प्रक्रिया को जब आगे बढ़ाने की बात आती है तो सबसे पहले भ्रष्टाचार के माने सिद्ध होने लगता है,भ्रष्टाचार की बली बेदी में जो कार्य असंभव होता है उसे भी चंद मिनटों में संभव बना दिया जाता है,जो कार्य बड़ी आसानी से हो सकता है उसे भी अधर में लटका देना सरकारी कार्यालयों में एक परंपरा बन चुकी है और जब कोई ऐसे ही तमाम बुराइयों को उजागर करने की ठान लेता है तो उसे यूं ही रास्ते से हटा दिया जाता है इस बात की गवाही कुछ माह पहले पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या अनचाहे ही गवाही देता है।
आज छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार का मुद्दा कितना जाना पहचाना लगता है कि हमारे बीच कख अधिकांश व्यक्ति भ्रष्टाचार क्या होता है,कैसे होता है? इसे लेकर समझाने की जरूरत नहीं है,और जब बात सरकारी कर्मचारियों की आती है तो भ्रष्टाचार उनके नज़रों के सामने सावन में छाई हुई हरियाली की तरह प्रतीत होता है, उनके द्वारा वैधानिक रूप से भी जिस कार्य को संपन्न कर दिए जाने की उम्मीद होती है,उस कार्य में मीन-मेख निकाल कर सामने खड़े सीधे-साधे व्यक्ति को भी भ्रष्टाचार के पथरीले राह पर चलने के लिए विवश कर दिया जाता है,यह भ्रष्टाचार की हरियाली लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में बारोह मासी छाया हुआ दिखाई देता है।

उल्लेखनीय है की एक साधारण आदमी अपने कार्य को लेकर क्षेत्रीय कार्यालयों का खाक छानता फिरता है जब उसे अपना काम बनता हुआ दिखाई नहीं देता है तो इस समस्या से उबर के लिए मुख्यमंत्री जनदर्शन, कलेक्टर जनदर्शन, तहसीलदार जनदर्शन, जैसे माध्यमों में भी जाकर आवेदन पर आवेदन देते फिरता है,इसके बाद भी जरूरी नहीं है कि उसकी समस्याओं का समाधान हो जाए,अन्यथा पुनः अधिकारी के समक्ष खड़े होकर गिड़गिड़ाना पड़ता है और इसी का फायदा उठाकर अधिकारी या कर्मचारी काम को संपन्न करने के बदले में जो मांग की जाती है उसे ही एक भ्रष्टाचार का नमूना समझा जा सकता है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड के आधार पर यह बात बड़ी आसानी से कही जा सकती है पिछले चार माह में छत्तीसगढ़ के 35 सरकारी मुलाजिम रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जा चुके हैं और अब वे जेल की हवा खा रहे हैं, इस रिश्वत के माया जंजाल में साधारण सा नजर आने वाला नगर पालिका से लेकर तहसील, राजस्व अनुविभागी अधिकारी, कलेक्टर कार्यालय, पटवारी, सरकारी अस्पताल, लोक निर्माण विभाग, लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी और यहां तक भ्रष्टाचार के मुखौटे में राजनीतिक भ्रष्टाचार, पुलिस द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार, न्यायिक क्षेत्र में होने वाली भयानक भ्रष्टाचार तो स्वर्ग सिधार चुके आत्मा को भी तड़पता है,जैसे तमाम शासकीय कार्यालय ऐसे हैं जहां नोटों की हरियाली से ही काम बन सकता है।

इन स्थानों पर यदि वैधानिक रूप से किसी कार्य को संपन्न करने का उम्मीद लेकर कर जब कोई व्यक्ति जाता है तो उसे नियम, कायदे कानून की मकड़ जाल में इस तरह से उलझाने का प्रयास किया जाता है मानो वह कोई अवैध कार्य कराने को अधिकारी या कर्मचारी पर दबाव डालने आया हो, ऐसे ही हालत पूरे प्रदेश भर के लगभग सभी सरकारी कार्यालय में देखने सुनने को मिलता है,ऐसी स्थिति में यदि राज्य सरकार के द्वारा गुड गवर्नेंस, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस रणनीति की बात की जाती है, तो यह केवल एक छलावा साबित होता है, इस भ्रष्टाचार के भारी भरकम खाई में निम्न सरकारी कर्मचारी से लेकर आले दर्जे के अधिकारियों तक अपना नाम और दामन भ्रष्टाचार की अग्नि में झुलसा बैठे हैं, बात छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार की लेवल की करें तो शराब घोटाले, महादेव ऑनलाइन सट्टा ऐप, कोयला का काला कारोबार में कमीशन का खेला जैसे एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार के आल्ह दर्जे के उदाहरण हमारे सामने है, ऐसे में फिर आम जनता आखिरकार कैसे अपना विकास कर पाएगा और जब जमीन से जुड़ा हुआ व्यक्ति ही विकसित नहीं हो पाएगा तो फिर प्रदेश विकास पथ पर अग्रसर कैसे हो सकता है सोचना तो लाजमी है।