
संवाददाता धीरेंद्र कुमार जायसवाल/ वनपरिक्षेत्र तपकरा में पेड़ों का क़त्ल जारी
राजस्व भूमि बना लकड़ी माफिया का अड्डा, वन विभाग की लापरवाही बेहिसाब!
जशपुर। जिले के वनपरिक्षेत्र तपकरा के ग्राम बोखी में राजस्व भूमि पर अवैध पेड़ों की कटाई खुलेआम जारी है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह क्षेत्र अब “लकड़ी माफिया” का अड्डा बन चुका है। सुनसान इलाकों में लंबे समय से भारी पैमाने पर पेड़ों की कटाई चल रही है, लेकिन वन विभाग के अधिकारी “अनभिज्ञता” का ढोंग रचकर चुप्पी साधे बैठे हैं।
सेमल के नाम पर सरई-महुआ की तस्करी!:
वन विभाग का कहना है कि केवल सेमल के पेड़ काटे जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को यह दावा हजम नहीं हो रहा। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल के नाम पर सरई और महुआ जैसे बहुमूल्य वृक्षों को धड़ाधड़ काटा जा रहा है। कटाई के बाद रातों-रात ठूंठों को मिटाकर सबूत भी साफ कर दिए जाते हैं।
दिन में कटाई… रात में तस्करी!
ग्रामीणों ने बताया कि दिन में पेड़ गिराए जाते हैं और रात के अंधेरे में ट्रक व पिकअप वाहनों में लकड़ी भरकर
अंबिकापुर मार्ग से यूपी, बिहार और एमपी तक भेज दी जाती है।
वाहन घंटों तक सुनसान सड़कों पर खड़े रहते हैं, लेकिन वन विभाग को कुछ नहीं दिखता।
पहले तुबा, अब बोखी—एक ही गिरोह सक्रिय
जानकारी के अनुसार यह वही गिरोह है जिसने पहले तुबा क्षेत्र में भी सैकड़ों पेड़ों की अवैध कटाई की थी।
शिकायतों के बावजूद विभाग ने केवल औपचारिक जांच की और कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
अब वही तस्कर बोखी क्षेत्र में फिर से सक्रिय हो गए हैं।
सवालों के घेरे में वन विभाग:
ग्रामीणों ने सवाल उठाया है कि जब फॉरेस्ट बेरियरों पर सीसीटीवी कैमरे और संसाधन मौजूद हैं,
तो इतने बड़े पैमाने पर तस्करी आखिर कैसे निकल जाती है? कहीं न कहीं लापरवाही या मौन समर्थन की बू साफ महसूस की जा रही है।
ग्रामीणों की मांग — कठोर कार्रवाई हो
ग्रामीणों का कहना है कि यदि इसी तरह पेड़ों का दोहन जारी रहा, तो कुछ वर्षों में यह क्षेत्र जंगल नहीं बल्कि उजाड़ मैदान बन जाएगा।
उन्होंने मांग की है कि—
वन विभाग की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए,
तस्करी में शामिल अधिकारियों और माफियाओं की मिलीभगत उजागर की जाए, और क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए त्वरित कार्रवाई की जाए।
जंगल बचाना अब चुनौती बन चुका है:
वन विभाग पर सवाल भारी हैं, पर जवाब अब भी गायब। यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो जशपुर का यह हराभरा इलाका आने वाले वर्षों में बंजर भूमि में बदल जाएगा। तपकरा के जंगल को बचाने के लिए अब दिखावे की नहीं, जमीन पर उतरकर कार्रवाई की ज़रूरत है।











