
📍 जौनपुर। संवाददाता धीरेंद्र कुमार जायसवाल
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पलटा फैसला: नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बलात्कार नहीं — मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला
इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005 के एक पुराने मामले में अहम फैसला सुनाते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई सात साल की सजा को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि यदि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नाबालिग से विवाह हुआ है, तो पति द्वारा पत्नी के साथ बनाए गए यौन संबंध को “बलात्कार” नहीं माना जा सकता।
यह फैसला न्यायमूर्ति अनिल कुमार की एकल पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि आरोपी ने पीड़िता को बहकाया या जबरन अपने साथ ले गया था।
2005 का मामला, 2007 में सुनाई गई थी सजा:
मामला वर्ष 2005 का है। अभियोजन के अनुसार, आरोपी युवक पर एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर ले जाने और उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। वर्ष 2007 में निचली अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 363, 366 और 376 के तहत दोषी पाते हुए सात साल की सजा सुनाई थी।
लड़की का बयान बना निर्णायक आधार:
सुनवाई के दौरान पीड़िता ने अदालत में बयान दिया कि वह आरोपी के साथ अपनी इच्छा से घर से निकली थी। उसने बताया कि दोनों ने विवाह किया था और लगभग एक माह तक भोपाल में साथ रहकर पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत किया था।
अदालत ने कहा कि इस स्थिति में यह निष्कर्ष निकलता है कि लड़की को जबरन या बहला-फुसलाकर नहीं ले जाया गया था। अतः अभियोजन पक्ष के आरोप सिद्ध नहीं होते।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर फैसला:
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि उस समय (2005) के कानून और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नाबालिग लड़की के साथ विवाह को अमान्य नहीं माना जाता था। इसलिए उस समय किए गए यौन संबंध को दंडनीय नहीं कहा जा सकता।
हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि यह निर्णय 2005 के कानून और परिस्थितियों पर आधारित है, वर्तमान में बाल विवाह निषेध अधिनियम और अन्य संशोधन लागू होने के बाद अब इस प्रकार की स्थिति में कानून का अलग प्रभाव पड़ेगा।
सजा रद्द, आरोपी को राहत:
न्यायमूर्ति अनिल कुमार ने निचली अदालत का 2007 का निर्णय निरस्त करते हुए आरोपी को दी गई सजा को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों से यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने कोई जबरदस्ती की थी या लड़की की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य किया था।
कानूनी विशेषज्ञों ने कहा—वर्तमान कानून अलग स्थिति दर्शाता है
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला उस समय के कानूनी ढांचे को ध्यान में रखकर दिया गया है। आज के समय में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 तथा ‘पोस्को’ कानून के तहत नाबालिग के साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध अपराध की श्रेणी में आता है।
📌 मुख्य बिंदु:
2005 में दर्ज हुआ था मामला!
2007 में सात साल की सजा सुनाई गई थी!
हाईकोर्ट ने 2025 में सजा रद्द की!
मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर कहा — “अपराध नहीं” ..
अदालत ने कहा — निर्णय उस समय के कानून पर आधारित है!











