
संवाददाता धीरेंद्र कुमार जायसवाल/अपनी मिट्टी की जुबान को सम्मान कब मिलेगा?
मन की बात: रायपुर के जवाहर नवोदय विद्यालय के बोर्ड पर हिंदी, अंग्रेजी और कन्नड़ भाषा में नाम लिखा गया है — पर छत्तीसगढ़ी नहीं।
यह दृश्य सिर्फ एक स्कूल की दीवार पर नहीं, बल्कि सोच की दीवार पर लिखा गया है।
“वोकल फॉर लोकल” का नारा हम सभी ने सुना है, लेकिन जब बात अपनी भाषा की आती है, तो वही आवाज़ मौन हो जाती है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में, जहाँ हर गली-मोहल्ले में छत्तीसगढ़ी की मिठास गूंजती है, वहाँ शिक्षा संस्थान के बोर्ड पर उसकी झलक तक न होना विडंबना है।
भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, पहचान का प्रतीक होती है। जब हम अपनी भाषा को दीवारों, बोर्डों और स्कूलों से हटाते हैं, तो हम अपनी अस्मिता का एक हिस्सा खो देते हैं।
समय आ गया है कि “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” सिर्फ नारा न रहे — उसे व्यवहार में भी जगह मिले।











