
जिला ब्यूरो हरिराम देवांगन/ NEET परीक्षा बनी कड़ी सुरक्षा की प्रयोगशाला – जेब से पैसे तक निकलवाए गए, छात्र मानसिक दबाव में
जिला मुख्यालय, जांजगीर-चांपा/ कहीं डर, कहीं संशय; कड़ी जांच के बीच परीक्षा केंद्र बना छावनी, अभ्यर्थियों की गरिमा और मानसिक स्थिति पर उठे सवाल
मुख्य बातें:
🌑स्वामी आत्मानंद विद्यालय बना NEET परीक्षा केंद्र!
🌑240 परीक्षार्थियों के लिए सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर अपमानजनक तलाशी!
🌑जेब के ऑटो किराये के पैसे भी अंदर ले जाने से रोका गया!
🌑पुलिस और सुरक्षाकर्मियों की सख्ती से छात्र मानसिक रूप से असहज!
सुरक्षा बनाम संवेदनशीलता पर उठे सवाल
रिपोर्ट: 4 मई को आयोजित NEET परीक्षा देशभर के लाखों मेडिकल अभ्यर्थियों के लिए एक निर्णायक क्षण होता है। लेकिन जांजगीर-चांपा जिले में आयोजित परीक्षा में सुरक्षा के नाम पर जिस प्रकार की सख्ती दिखाई गई, उसने न केवल छात्रों को मानसिक रूप से झकझोर दिया बल्कि “सुरक्षा बनाम संवेदनशीलता” की बहस को भी जन्म दे दिया।
“जेब में रखे ऑटो किराये के पैसे ले जाने से रोका”
यह कथन अब महज व्यंग्य नहीं, एक आशंका बनता जा रहा है। स्वामी आत्मानंद विद्यालय में बनाए गए परीक्षा केंद्र में 240 परीक्षार्थियों को इस कदर जांचा-परखा गया कि उन्हें जेब में रखे ऑटो किराये के पैसे तक अंदर ले जाने से रोका गया।
क्या चंद रुपये भी अब सुरक्षा जोखिम बन चुके हैं?
लॉकेट, अंगूठी, कड़ा, पेंडेंट जैसी वस्तुओं को हटाने की परंपरा समझी जा सकती है, लेकिन जेब में रखे चंद रुपये तक निकलवाना यह दर्शाता है कि अधिकारियों में संवेदनशीलता की कमी है। परीक्षा देने आए छात्र पहले ही मानसिक दबाव में रहते हैं, उस पर ऐसी कठोर प्रक्रिया उन्हें और अधिक भयभीत करती है।

पुलिस की मौजूदगी, सुरक्षा या भय का वातावरण?
परीक्षा केंद्र के बाहर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती इस हद तक थी कि छात्रों और अभिभावकों को यह केंद्र किसी VIP कार्यक्रम की सुरक्षा जैसा प्रतीत हो रहा था। अंदर जाते वक्त छात्र अपने हर कदम पर जांच और संदेह के साए में थे। एक छात्र ने यहां तक कहा—”ऐसा लग रहा था जैसे हम परीक्षा नहीं, कोई अपराध करके आए हैं।”
सवाल उठता है—क्या यह सुरक्षा या संवेदनहीनता?
NEET जैसे महत्वपूर्ण परीक्षा में नकल और अनियमितताओं को रोकना जरूरी है, लेकिन छात्रों की मानसिक स्थिति और गरिमा का भी ध्यान रखना उतना ही जरूरी है।
सुरक्षा के नाम पर अपनाई गई यह “शून्य विश्वास की नीति” कहीं न कहीं भावनात्मक शोषण जैसा प्रतीत होती है।
निष्कर्ष:
यदि परीक्षा को निष्पक्ष और पारदर्शी रखना लक्ष्य है, तो उसके साथ छात्रों को सम्मान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण होना चाहिए। आवश्यकता है, सुरक्षा व्यवस्था के साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की।