
संवाददाता हरिराम देवांगन
विकास पथ पर पिछड़ रहा छत्तीसगढ़/अनियंत्रित जनसंख्या कहीं इसकी वजह तो नहीं?
प्रदेश का जनसंख्या वृद्धि दर 2011 के अनुसार 11.85 प्रतिशत

जिला जांजगीर चांपा- यूं तो प्रदेश की कुल आबादी जनगणना 2011 के अनुसार 3 करोड़ की संख्या को पार कर चुकी है, किसी राज्य के विकास के लिए पर्याप्त जनसंख्या (श्रम शक्ति) होने से विकास को कोई नहीं रोक सकता लेकिन जब जनसंख्या भौगोलिक दृष्टि सहित संसाधनों के अनुपात में अत्यधिक हो जाए तो इससे प्रदेश विकास की संभावना नि:संदेह प्रभावित हो सकता है,और शायद ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है छत्तीसगढ़ के भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर जहां जनसंख्या का घनत्व 190 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर आंका गया है,जबकि भारत में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के अनुमान आंका गया है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में जनसंख्या वृद्धि दर देश में अन्य राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है,संपूर्ण छत्तीसगढ़ में जनसंख्या के अनुसार से अधिकांश लोग कृषि कार्य पर निर्भर हैं और अधिकतर जिलों मे पूरा परिवार खेती किसानी में अपना हाथ बंटाते हैं,इसीलिए छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा की उपमा प्रदान की जा चुकी है, इसके उपरांत भी अन्य राज्यों की अपेक्षा में प्रदेश का सकल विकास को नापने के पैमाना के आधार पर कहा जा सकता है कि अभी भी राज्य विकास की गति अवरुद्ध है मंथरा है।

प्रदेश के विकास के लिए पर्याप्त जनसंख्या भी उतना ही मायने रखता है जितना विकास के अन्य आयामों को महत्व दिया जाता है,प्रदेश में जितना श्रम शक्ति उपलब्ध होगा उतना ही तेजी से प्रदेश का विकास संभव हो सकता है, लेकिन विकास केवल श्रम शक्ति पर निर्भर नहीं करता बल्कि प्रदेश का भौगोलिक स्थिति सहित प्राकृतिक संसाधनों की कितना और क्या उपलब्धता है इस पर भी प्रदेश का विकास निर्भर करता है, पहले से ही हमारा प्रदेश कृषि प्रधान रहा है क्योंकि यहां श्रम शक्ति को नियोजित करने के लिए कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र उतना सशक्त और सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं है,जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा दिगर कार्य में भागीदारी करने के बजाय केवल कृषि पर आकर टिक जाता है, यह तथ्य सौ फ़ीसदी सत्य है कि

छत्तीसगढ़ को यदि काला हीरा का (कोयला) गढ़ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति वाली बात नहीं होगी,पर केवल कोयला उत्खनन को लेकर ही प्रदेश का विकास निर्भर नहीं करता,चहुं मुखी विकास के लिए तमाम जरूरी संसाधनों की उपलब्धता भी उतना ही मायने रखता है,जहां एक ओर किसानों के द्वारा बहुतायात से कृषि कार्य को संपन्न किया जाता है तो वहीं कृषकों के द्वारा उन्नत संसाधनों को पर्याप्त महत्व नहीं देने के चलते भी कृषि कि उत्पादकता और कृषि क्षेत्र में लगे हुए किसानों की उन्नति भी लंबे समय से प्रभावित हो रही है,जैसे कि हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं प्रदेश को कृषि प्रधान माना गया है और कृषि क्षेत्र को रेखांकित किया जाए तो कहीं ना कहीं किसान द्वारा सीमित संसाधन एवं आधुनिकता से दूरी बनाकर चलते हैं,एक तथ्य यह भी है कि प्रदेश का कृषि कार्य मानसून के हाथों का जुआ भी माना जाता है, छत्तीसगढ़ 33 अलग-अलग जिलों में विभाजित है और अधिकांश जिलों का कृषि कार्य मानसून और बदरा पर निर्भर करता है किसान के परिवार में लगभग सभी सदस्य एक ही कार्य में जुटे हुए पाए जाते हैं जिस कारण भी कृषि पर अत्यधिक निर्भरता किसानों के दरिद्रता के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार कहा जा सकता है जब प्रदेश के अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर होकर एकाकी जीवन शैली जीने के लिए विवश होंगे तो फिर संपूर्ण रूप से प्रदेश का विकास तो प्रभावित होगा इस पर भी विचार मंथन तो लाजिमी हो जाता है।
