
विकास में पिछड़ रहा छत्तीसगढ़ भाग, प्रादेशिक उन्नति पर नकेल डालता नक्सलवाद की समस्या, विकास और शांति के माथे पर काला कलंक
जिला उप मुख्यालय चांपा- नक्सलियों को प्रदेश के शांति एवं उन्नति के सशस्त्र लुटेरों की संज्ञा दे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, पिछले लगभग 20 सालों से नक्सलवाद प्रदेश के माथे पर काला और कलंकित टीका का पर्याय बना हुआ है, अक्सर इनके द्वारा सुरक्षा बलों के साथ आम नागरिकों को टारगेट में लेकर लगातार हमले किए जाने की घटनाएं होती रही है,जिसमें पूरे प्रदेश में आए दोनों अशांति का माहौल बता रहता है,यहां बताते चलें कि छत्तीसगढ़ के लगभग 15 जिले नक्सली गतिविधियों से प्रभावित है जिसमें लगातार हो रही वारदातों को ध्यान में रखकर स्पष्ट किया जा सकता है दंतेवाड़ा, गरियाबंद, नारायणपुर,सुकमा, गंडई, जैसे जिले बहुत ज्यादा अशांत और प्रभावित क्षेत्र में गिनती होती है जबकि धमतरी, कांकेर, कोंडागांव,महासमुंद, राजनंदगांव, अंबागढ़ चौकी,खैरागढ़, छुई खदान, कबीरधाम और मुंगेली यह ऐसे जिले हैं जहां नक्सलियों की गतिविधियां कम देखी जाती है लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में इन्हें कुख्यात भी कहा जा सकता है।
पहले कथित लोगों के हीरो कहलाते थे नक्सली- नक्सलियों के द्वारा अक्सर कायराना पूर्वक हमले को अंजाम दिया जाता है जिसमें विशेष कर सुरक्षा बलों को केंद्र में रखकर हमला करने की बातें सामने आती रही हैं, इन वारदातों में सुरक्षाबालों के रन बांकुरों के साथ ही आम नागरिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ती रही है,अभी कुछ रोज पूर्व 6 जनवरी को बीजापुर में सुरक्षा बलों के कफिलों पर हमला करते हुए जिस तरह से करना हरकत को अंजाम दिया गया है उसमें डीआरजी के आठ जवान सहित एक ड्राइवर शाहिद होकर अपना जान न्योछावर कर चुके हैं,यह केवल एक उदाहरण मात्र है पिछले 20 से भी अधिक सालों से उनके द्वारा जिस तरह से चोरी छिपे घातक और कायरता पूर्वक छोटे-बड़े अनगिनत घटनाओं को अंजाम दिया गया है उनके कारणों से पूरा प्रदेश एक नहीं अनेकों बार सहम सा जाता है और इन्हीं गंभीर घटनाओं के चलते प्रदेश के विकास को अपूर्णिय नुकसान पहुंचता है, कहे तो कोई दो राय वाली बात नहीं होगी, इन नक्सलियों के द्वारा आते दिनों जिस तरह से वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है उसके आधार से प्रदेश में लघु व कुटीर उद्योग या भारी भरकम निवेश करने वाले उद्योगपतियों को अनुकूल और शांत माहौल की जरूरत होती है,जो की नक्सलियों के आमद से प्रदेश अभाव बना हुआ हैं, सो उद्योग धरानों को अनेकों बार सोचना पड़ेगा,जब प्रदेश में छोटे से लेकर बड़े उद्योगों की स्थापना नहीं होगी तो फिर प्रदेश की उन्नति को गति प्रदान कैसे की जा सकती है, प्रदेश की उन्नति को यदि अवरुद्ध करने वाले कारकों की समीक्षात्मक पड़ताल करें तो यह एक मुख्य कारणों में शुमार किया जा सकता है।
नक्सलियों को खत्म करना या मुख्य धारा में जोड़ना बड़ी गंभीर चुनौती– नक्सलियों के द्वारा वारदातों को जिस तरह से अंजाम दिया जाता है उसमें बहुत अधिक तादाद में हथियारों की उन्हें जरूरत पड़ती है,उनके वारदातों के बाद सुरक्षा बलों के द्वारा एहतियातन सघन जांच अभियान सहित नक्सलियों के छुपे होने के ठिकानों पर हथियारों के दम पर जिस तरह से कार्यवाही की जाती है उसे नक्सली समस्या का समाधान होना संभव नहीं है, पर परिस्थिति वश सुरक्षा बलों को भी नक्सलियों का सामना करने के लिए हथियारों की जरूरत को पड़ती ही है और सुरक्षा बलों के हाथों प्रदेश के अमनो चैन को खोखला करने वाले नक्सलियों को मौत के घाट उतारा भी जाता रहा है, लेकिन समस्या यहां पर यथावत हमेशा की तरह बना हुआ है, रही मुद्दा नक्सलियों को खत्म करना या फिर उन्हें मुख्य धारा में जोड़ना तो हमेशा से यह कड़ी चुनौती केंद्र अथवा प्रदेश सरकार के पास बना हुआ है, फिर हाल इस समस्या पर कहीं कोई समाधान निकलकर आता हुआ दिखाई नहीं देता है, सालों से चल रही नक्सलवाद की समस्या की जड़े लगातार प्रदेश में बढ़ती ही चली जा रही है और इनका विस्तार अन्य जिलों में भी लगातार हो रहा है, पहले प्रदेश के कुछ जिलों में ही नक्सलियों का गतिविधि देखा जाता था, लेकिन आज 15 से भी अधिक जिले आतंक का पर्याय बना हुआ है, ऐसी हालत में प्रदेश का विकास कैसे संभव हो सकता है,जहां प्रदेश का आधे से भी अधिक जिलो नक्सलियों की धमक महसूस की जा रही है,ऐसा नहीं केवल छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या है, बल्कि देश में कई ऐसे राज्य हैं जहां नक्सलियों द्वारा की जाने वाली गंभीर वारदातों का सामना करना पड़ता है, रही शेष मसाला छत्तीसगढ़ की तो जब तक नक्सलवाद पूरी तरह से समाप्त नहीं होगा तब तक प्रदेश का शक्ल विकास अवरोध बने होने की बड़ी संभावना व्यक्त की जा सकती है।