
संपादक धीरेंद्र कुमार जायसवाल/ पैम्फलेट से फैलाया जा रहा भ्रम? भाटापारा में यादव समुदाय के दूध विक्रेताओं को बदनाम करने का आरोप
भाटापारा (छत्तीसगढ़)।
शहर में इन दिनों खुले दूध को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है। यादव समुदाय के वे लोग, जो वर्षों से घर-घर जाकर ताज़ा दूध की आपूर्ति करते आ रहे हैं, उनका आरोप है कि उन्हें योजनाबद्ध तरीके से बदनाम किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों के अनुसार शहर के कई इलाकों में ऐसे पाम्पलेट बांटे जा रहे हैं, जिनमें लिखा है कि “खुला दूध गंदा होता है, इसे न लें, इससे तबीयत खराब हो सकती है।” इस तरह के संदेशों से न सिर्फ उपभोक्ताओं में भ्रम फैल रहा है, बल्कि परंपरागत रूप से दूध व्यवसाय से जुड़े यादव समुदाय की आजीविका पर भी असर पड़ रहा है।
कंपनी बनाम परंपरागत विक्रेता?
यादव समुदाय के दूध विक्रेताओं का कहना है कि यह प्रचार एक निजी पैकेट दूध कंपनी के मालिक द्वारा करवाया जा रहा है, जो बाजार में अपने ब्रांडेड दूध की बिक्री करता है।
विक्रेताओं का यह भी दावा है कि जिस कंपनी का पैकेट दूध “शुद्ध और सुरक्षित” बताकर बेचा जा रहा है, वह दूध भी उन्हीं स्थानीय पशुपालकों से कलेक्शन के जरिए लिया जाता है।
“अगर हमारा दूध गंदा है, तो वही दूध कंपनी में जाकर कैसे शुद्ध हो जाता है?” – स्थानीय दूध विक्रेता
सवालों के घेरे में प्रचार
मामले में यह सवाल भी उठ रहा है कि बिना किसी जांच या स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के इस तरह के पाम्पलेट बांटना क्या उचित है?
स्थानीय नागरिकों का मानना है कि यदि दूध की गुणवत्ता को लेकर कोई शिकायत है, तो उसका समाधान जांच और नियमों के माध्यम से होना चाहिए, न कि किसी समुदाय विशेष को बदनाम करके।
प्रशासन से कार्रवाई की मांग
यादव समुदाय के लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि:
भ्रामक पाम्पलेट बांटने वालों की पहचान की जाए
दूध की गुणवत्ता की निष्पक्ष जांच कराई जाए
किसी भी समुदाय की छवि खराब करने वाले कृत्य पर रोक लगे
फिलहाल यह मामला भाटापारा में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस विवाद पर क्या रुख अपनाता है और क्या दूध विक्रेताओं को न्याय मिल पाता है।











