
विकास में पिछड़ रहा छत्तीसगढ़ भाग 2 …अन्य राज्यों की अपेक्षा छत्तीसगढ़ में साक्षरता की दर प्रदेश की विकास अवरुद्ध की वजह तो नहीं ?
जिला उप मुख्यालय चांपा- वैसे तो देश अथवा प्रदेश की सकल विकास के लिए जनता का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक होता है,जहां तक बात है छत्तीसगढ़ की तो यहां अन्य कई राज्यों की अपेक्षा साक्षरता की दर संतोषजनक नहीं कहीं जा सकती,विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा की भयावह तस्वीर सामने प्रस्तुत करता है, बतौर उदाहरण पूरे देश में केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां साक्षरता दर 100% वाला राज्य का तमगा हासिल करता है, इसके बाद लक्षद्वीप 90% मिजोरम 91% गोवा 88% राजस्थान 67 % अरुणाचल प्रदेश 66% तेलंगाना 66% और बिहार 63% तो वहीं छत्तीसगढ़ 65% का आंकड़ा ले देकर कर हासिल है, वैसे प्रदेश की बात करें तो दुर्ग एकमात्र ऐसा जिला है जहां साक्षरता दर 70% पाई गई है, जिसमें पुरुष 80% एवं महिलाएं 70% साक्षरता की दर लिए खड़े हुए हैं, पर यह प्रदेश के विकास मॉडल को अग्रसर करने के लिए काफी नहीं है यहां प्रस्तुत साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार प्राप्त जानकारी में यह तस्वीर उभर कर सामने आती है,यहां पर प्रदेश के कम विकासशील होने के कारणों को यथासंभव रेखांकित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें प्रदेश का विकास बहुत हद तक प्रदेशवासियों के शिक्षित होने पर निर्भर करता है,माना प्रदेश का 65 प्रतिशत आबादी शिक्षित श्रेणी में गिना जाता है,लेकिन यह श्रेणी विशेष कर शहरी क्षेत्रों से आता है,पर ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता का मतलब अधिकांश जनता के लिए काला अक्षर भैंस बराबर कहावत को चरितार्थ करता है, शिक्षा के प्रकार को शिक्षित,अल्प शिक्षित, तथा अशिक्षित की श्रेणी में रखकर यदि देखा जाए तो प्रदेश में इसका मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है, शहरी क्षेत्रों में साक्षरता दर को संतोषप्रद मान लिया जाए तो भी ग्रामीण क्षेत्रों में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बहुत दैनिय हालात में देखा जाता है,जहां स्वयं मां-बाप अशिक्षित या अल्प शिक्षित होते हुए भी अपने मासूम बच्चों को स्कूल भेजने के लिए ज्यादा संजीदा नजर नहीं आते हैं।

अक्सर यह भी पाया गया है कि स्कूलों में कार्यरत शिक्षक विद्यालय से नदारत होते हैं, इसका एक नहीं अनगिनत कारण हो सकते हैं जैसे शिक्षक महोदय कृषि संबंधित कार्य में बिजी होते हैं या फिर नशे के फिराक में यहां वहां भटकते फिर रहे होते हैं अथवा शासन से संबंधित कार्य में उन्हे पदस्थ कर दिया जाता है,जिसका फायदा उठाकर बच्चे स्कूल पहुंचकर भी विद्या अध्ययन करने से वंचित हो जाते हैं, जहां एक तरफ केंद्र सरकार व राज्य सरकार के मिले-जुले प्रयास से शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निशुल्क शिक्षा एवं भोजन उपलब्ध कराए जाने की योजना के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की स्कूलों में उपस्थित बड़ी कमजोर होती है, दूर सुदूर अंचलों मे शासन प्रशासन के द्वारा सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर सुविधा हीन टूटी-फूटी स्कूल भवन से अभिभावक हतोत्साहित हो कर बच्चों को स्कूल भेजने में रुचि नहीं दिखाते हैं, जिसका नतीजा सामने होता है बच्चों को पुश्तैनी कार्य अथवा खेती किसानी या बालपन से ही छोटे-मोटे रोजगार में लगाना ज्यादा बेहतर समझते हैं अथवा छोटे बच्चों को रोजमर्रा के कार्य में लगा देने से उनका पढ़ाई पूरी तरह से प्रभावित होता है,ऐसी स्थिति में बच्चे ना शिक्षित हो पाते हैं ना अच्छे नागरिक के रूप में अपना परिचय बना पाते हैं, यही कुछ हाल ग्रामीण क्षेत्र का असल तस्वीर उकेरता हुआ हमें दिखाई पड़ता है, परिणाम स्वरूप जब बच्चे ही शिक्षित और कुशल नहीं होंगे तो फिर घर परिवार से लेकर प्रदेश कैसे खुशहाल और उन्नत प्रदेश बन सकता है।
शासन द्वारा शिक्षा के प्रसार प्रसार के लिए शहरी क्षेत्रों के स्कूलों को जिस तरह से बेहतर बनाने के लिए कार्य करना पड़ रहा है उससे कहीं ज्यादा बेहतर और गंभीरता के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्तर को सुधारने के लिए यदि सालों पहले से गंभीर प्रयास किया जाता तो आज ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता की दर इतना काम नहीं होता,जहां बच्चो की स्कूलों में उपस्थिति कम देखी जाती है वहीं बड़े बुजुर्गों को शिक्षित करने का जो प्रयास है वह कहीं भी दिखाई नहीं देता, बच्चों को शिक्षित करने पर ध्यान नहीं दिया जाता तो वहां बड़ों को शिक्षित करने की बात तो और भी असंभव सा लगता है, ऐसे स्थिति में आखिरकार प्रदेश का विकास किस तरह से संभव हो सकता है सोचना लाजमी है।